Sunday, February 9, 2014

सुखासन VS Buffet

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सबसे पहेले हम भोजन इसलिए करते है क्योंकि उससे हमारे शरीर को कार्य करने की ऊर्जा मिलती है । भोजन हमारे जीवन की सबसे आवश्यक जरुरतों में से एक है । भोजन ही हमारे शरीर को जीने की शक्ति प्रदान करता है ।
     अब भोजन करने के बाद महत्व की जो बात है वोह यह की आप ने जो भोजन किया है उसका ठीक तरीके से पाचन हो और उससे सात धातु (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र ) आप के शरीर में निर्माण हो और बाकी बचे तत्व मल विसर्जन होकर बाहर निकल जाये  जिससे आप तंदुरस्त जीवन जी सको.

=>खड़े होकर या डायनिंग टेबल पर खाना क्यों नहीं खाना चाहिए ?
*जब आप खड़े होते है या कुर्सी पर बैठते है तब आपकी आंत (Intestine) सिकोड़ (Compress) जाती है और मन की व्याकुलता (distraction) बढ़ जाती है । जिससे भोजन ठीक से नहीं पच पाता है फिर इसीके कारण कब्ज (constipation), अम्लता (Acidity) होता है जो हजारो रोगो का मूल है ।
* पुरे शरीर में रक्त संचार (Blood circulation) सही तरीके से नहीं होता ।

=>सुखासन ही में बैठकर क्यों खाना चाहिए ?
*सुखासन करने से चित्त (Mind) शांत होता है ।
*चित्त एकाग्र (concentrated) होता ।
*सुखासन से पैरों का रक्त संचार कम होकर  अतिरिक्त रक्त अन्य अंगों की ओर संचारित होने लगता है जिससे उनमें क्रियाशीलता बढ़ती है , पाचन शक्ति मजबूत होती है और भोजन के सारे महत्व तत्व आसानी से ग्रहण हो जाते है । शरीर अधिक ऊर्जावान हो जाता है ।
*मानसिक तनाव कम होता है और मन में सकारात्मक विचारों का प्रभाव बढ़ता है ।

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Thank you
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Monday, October 14, 2013

अंग्रेजी शिक्षा

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* क्या अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा है ?
* क्या अंग्रेजी विज्ञान और तकनिकी भाषा है ?
* क्या अंग्रेजी जाने बिना देश का विकास नहीं हो सकता ?
* क्या अंग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है ?


तो आइए जानते है अंग्रेजी की सच्चाई को !

मित्रो पहले आप एक खास बात जाने ! कुल २०० से भी ज्यादा देश है पूरी दुनिया मे जो भारत से पहले और भारत के बाद आजाद हुए हैं ! भारत को छोड़ कर उन सब मे एक बात सामान्य हैं कि आजाद होते ही उन्होने अपनी मातृभाषा को अपनी राष्ट्रीय भाषा घोषित कर दि ! लेकिन शर्म की बात है भारत आजादी के 65 साल बाद भी नहीं कर पाया, आज भी भारत मे अँग्रेजी सरकारी सतर की भाषा  है !

अँग्रेजी के पक्ष में तर्क और उसकी सच्चाई :

१) अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है :- दुनिया में इस समय २०० से भी ज्यादा देश हैं और मात्र 12 देशों में अँग्रेजी बोली, पढ़ी और समझी जाती है ! संयुक्त राष्ट्र संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है ! इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे ! ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी ! अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी ! पूरी दुनिया में जनसंख्या के हिसाब से सिर्फ 3% लोग अँग्रेजी बोलते हैं ! इस हिसाब से तो अंतर्राष्ट्रीय भाषा चाइनिज हो सकती है क्यूंकी ये दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है और दूसरे नंबर पर हिन्दी हो सकती है !

२) अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है :- किसी भी भाषा की समृद्धि इस बात से तय होती है की उसमें कितने शब्द हैं और अँग्रेजी में सिर्फ १२००० मूल शब्द हैं बाकी अँग्रेजी के सारे शब्द चोरी के हैं या तो लैटिन के, या तो फ्रेंचके, या तो ग्रीक के, या तो दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देशों की भाषाओं के हैं ! आपने भी काफी बार किसी अँग्रेजी शब्द के बारे मे पढ़ा होगा ! ये शब्द यूनानी भाषा से लिया गया है ! ऐसी ही बाकी शब्द है !

उदाहरण: अँग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सब UNCLE चाची, ताई, मामी, बुआ सब AUNTY क्यूंकी अँग्रेजी भाषा में शब्द ही नहीं है ! जबकि गुजराती में अकेले 40,000 मूल शब्द हैं ! मराठी में 48000+ मूल शब्द हैं जबकि हिन्दी में 70000+ मूल शब्द हैं! कैसे माना जाए अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है ? अँग्रेजी सबसे लाचार/पंगु/ रद्दी भाषा है क्योंकि इस भाषा के नियम कभी एक से नहीं होते ! दुनिया में सबसे अच्छी भाषा वो मानी जाती है जिसके नियम हमेशा एक जैसे हों, जैसे: संस्कृत ! अँग्रेजी में आज से २०० साल पहले This की स्पेलिंग Tis होती थी !

अँग्रेजी में २५० साल पहले Nice मतलब बेवकूफ होता था और आज Nice मतलब अच्छा होता है ! अँग्रेजी भाषा में Pronunciation कभी एक सा नहीं होता ! Today को ऑस्ट्रेलिया में Todie बोला जाता है जबकि ब्रिटेन में Today. अमेरिका और ब्रिटेन में इसी बात का झगड़ा है क्योंकि अमेरीकन अँग्रेजी में Z का ज्यादा प्रयोग करते हैं और ब्रिटिश अँग्रेजी में S का, क्यूंकी कोई नियम ही नहीं है और इसीलिए दोनों ने अपनी अपनी अलग अलग अँग्रेजी मान ली !

३) अँग्रेजी नहीं होगी तो विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई नहीं हो सकती::- दुनिया में दो देश इसका उदाहरण हैं की बिना अँग्रेजी के भी विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई होती है- जापान और फ़्रांस ! पूरे जापान में इंजीन्यरिंग, मेडिकल के जीतने भी कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं इन सबमें पढ़ाई "JAPANESE" में होती है, इसी तरह फ़्रांस में बचपन से लेकर उच्चशिक्षा तक सब फ्रेंच में पढ़ाया जाता है !
हमसे छोटे छोटे, हमारे शहरों जितने देशों में हर साल नोबल विजेता पैदा होते हैं लेकिन इतने बड़े भारत में नहीं क्यूंकी हम विदेशी भाषा में काम करते हैं और विदेशी भाषा में कोई भी मौलिक काम नहीं किया जा सकता सिर्फ रटा जा सकता है! ये अँग्रेजी का ही परिणाम है की हमारे देश में नोबल पुरस्कार विजेता पैदा नहीं होते हैं क्यूंकी नोबल पुरस्कार के लिए मौलिक काम करना पड़ता है और कोई भी मौलिक काम कभी भी विदेशी भाषा में नहीं किया जा सकता है ! नोबल पुरस्कार के लिए P.hd, B.Tech, M.Tech की जरूरत नहीं होती है ! उदाहरण: न्यूटन कक्षा ९ में नापास हो गया था, आइनस्टाइन कक्षा १० के आगे पढे ही नही और E=hv बताने वाला मैक्स प्लांक कभी स्कूल गया ही नहीं ! ऐसे ही शेक्सपियर, तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास आदि के पास कोई डिग्री नहीं थी, इन्होने सिर्फ अपनी मातृभाषा में काम किया !

जब हम हमारे बच्चों को अँग्रेजी माध्यम से हटकर अपनी मातृभाषा में पढ़ाना शुरू करेंगे तो इस अंग्रेज़ियत से हमारा रिश्ता टूटेगा !

क्या आप जानते हैं जापान ने इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली ? क्यूंकी जापान के लोगों में अपनी मातृभाषा से जितना प्यार है उतना ही अपने देश से प्यार है ! जापान के बच्चों में बचपन से कूट- कूट कर राष्ट्रीयता की भावना भरी जाती है ! जो लोग अपनी मातृभाषा से प्यार नहीं करते वो अपने देश से प्यार नहीं करते सिर्फ झूठा दिखावा करते हैं !

दुनिया भर के वैज्ञानिकों का मानना है की दुनिया में कम्प्युटर के लिए सबसे अच्छी भाषा 'संस्कृत' है ! सबसे ज्यादा संस्कृत पर शोध इस समय जर्मनी और अमेरिका में चल रही है! नासा ने 'मिशन संस्कृत' शुरू किया है और अमेरिका में बच्चों के पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया गया है ! सोचिए अगर अँग्रेजी अच्छी भाषा होती तो ये अँग्रेजी को क्यूँ छोड़ते और हम अंग्रेज़ियत की गुलामी में घुसे हुए है! कोई भी बड़े से बड़ा तीस मार खाँ अँग्रेजी बोलते समय सबसे पहले उसको अपनी मातृभाषा में सोचता है और फिर उसको दिमाग में Translate करता है फिर दोगुनी मेहनत करके अँग्रेजी बोलता है ! हर व्यक्ति अपने जीवन के अत्यंत निजी क्षणों में मातृभाषा ही बोलता है ! जैसे जब कोई बहुत गुस्सा होता है तो गाली हमेशा मातृभाषा में ही देता हैं !

मातृभाषा पर गर्व करो और अंग्रेजी की गुलामी छोड़ो
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Sunday, October 13, 2013

चुम्बक के प्रकार

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चुम्बक के मुलभुत पाच प्रकार है.
*भ्रामकं
*चुम्बकं
*कर्षकं
*द्रावकं
*रोमकं

ऊपर के पाच प्रकार के छ उपप्रकार है.
*एक तरफा (Single Faced)
*दो तरफा  (Double Faced)
*तिन तरफा  (Three Faced)
*चार तरफा (Four Faced)
*पाच तरफा (Five Faced)
* अनेक तरफा (Multi Faced)

ऊपर के कुल तीस (३०) प्रकार के चुम्बक तिन(३) रंग मैं पाए जाते है.
*पीला
*लाल
*काला

मतलब चुम्बक कुल ९० प्रकार मैं विभाजित होता है.
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Saturday, October 12, 2013

प्राचीन जहाज

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प्राचीन समय से ही भारत मैं जहाज बनाये जाते थे. इसका प्रमाण एक युक्तिकल्पतरु नामक हस्तलेख द्वारा प्राप्त हुआ है.यह हस्तलेख महाराजा भोज ने लिखा था.महाराजा भोज मध्य भारत के मालवा प्रदेश मैं ११वि शताप्दी मैं राज करते थे.युक्तिकल्पतरु लेख अभी कलकता के संस्कृत पुस्तकालय मैं है.युक्तिकल्पतरु लेख मैं प्राचीन भारत में जहाज निर्माण की कला का समावेश है.
यह लेख मैं वृक्ष-आयुर्वेद ("वनस्पति विज्ञान") के अनुसार लकड़ी के चार अलग अलग प्रकार का वर्णन है.प्रथम प्रकार का लकड़ा हल्का और नरम जो दुसरे कीसी भी प्रकार के लकड़े से जुड़ सकता है, दूसरा प्रकार का लकड़ा हल्का और ठोस जो दुसरे किसी भी प्रकार के लकड़े से जुड़ नहीं सकता.तीसरे प्रकार का लकड़ा नरम और भारी और चौथे प्रकार का लकड़ा ठोस और भारी बताया गया है.

महाराजा भोज के अनुसार जहाज दुसरे प्रकार के लकड़े से बनता है.इस प्रकार के जहाजों को सुरक्षित रूप से महासागरों को पार करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.जहाज के निचले हिस्से मैं लकड़े को जोड़ ने के लिए कभी लोहे का इस्तमाल नहीं करना चाहिए क्युकी उसकी वजह से जहाज चुम्बकीय क्षेत्र से प्रभावित होता है और जहाज डूबने की स्थिति निर्माण होने का खतरा बढ सकता है.

महाराजा भोज ने जहाज को सामान्य (नदी मैं रहेने वाले) और विशेष्य(सागर मैं रहेने वाले) इस प्रकार विभाजित किया है.सामान्य प्रकार के जहाज मैं दीर्घिका, तारनी, लोटा, गतवारा, गामिनी, तारी, जंगला, प्लाविनी, धर्निनी, बिजिनी का समावेश होता है.और विशेष्य जहाज मैं ऊर्ध्व, अनुर्ध्व, घर्भिनी, मंथरा का समावेश होता है.
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Friday, October 11, 2013

प्रकाश की गति

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धारणा है कि प्रकाश की गति की गणना , प्रथम बार स्कॉटलेंड के एक वैज्ञानिक 'जेम्स क्लर्क मेक्सवेल ने उन्नीसवी सदी मे की थी । इससे पूर्व यह किसी को ज्ञात ही न था । यह धारणा सही नहीं है, देखिये किस प्रकार....
 
ऋग्वेद मे एक मंत्र आता है-

अर्थ:- सूरज जल्दी से सारी दुनिया में व्याप्त हो जाता है ।
इस ऋचा को पढ़कर सायनाचार्य ने टिप्पणी के रूप में सूर्य की एक और स्तुति लिखी, जो इस प्रकार है...


 अर्थात सूर्य से मिलनेवाला प्रकाश आधे निमिष में २२०२ योजन की यात्रा करता है । निमिष समय की इकाई है । आइये अब इस गणना को आधुनिक इकाइयो के रूप मे परिवर्तित करते है--

 मनुस्मृति के इस श्लोक के अनुसार --

पलक झपकने के समय को 1 निमिष कहा जाता है !

18 निमीष = 1 काष्ठ;
30 काष्ठ = 1 कला;
30 कला = 1 मुहूर्त;
30 मुहूर्त = 1 दिन व् रात  (लगभग 24 घंटे )

अतः एक दिन (24 घंटे) में निमिष हुए :
24 घंटे = 30*30*30*18= 486000  निमिष
24 घंटे में सेकंड हुए = 24*60*60 = 86400  सेकंड
86400 सेकंड =486000 निमिष

अतः 1 सेकंड में निमिष हुए :
1 निमिष = 86400 /486000  =  .17778 सेकंड
1/2 निमिष =.08889 सेकंड

1 योजन = 8 मील
2202 योजन = 8 * 2202 = १७६१६ मील

सूर्य प्रकाश 1/2 (आधे) निमिष में 2202 योजन चलता है अर्थात

.08889 सेकंड में १७६१६ मील चलता है ।
.08889 सेकंड में प्रकाश की गति =  १७६१६ मील
1 सेकंड में = १७६१६  / .08889   =  198177  मील लगभग

 आज की प्रकाश गति गणना १८६२८२.३९७  मील प्रति सेकंड लगभग
जो कि आधुनिक विज्ञान द्वारा मापी गयी प्रकाश की गति के लगभग समकक्ष बैठती है । किन्तु आधुनिक विज्ञान अनेकों उपकरणो की सहायता से यह सब ज्ञात करता है किन्तु इस राष्ट्र के ऋषि मुनि वेदऋचाओ के सिद्धत्व से, योग से, तरंगविज्ञानादि के द्वारा सृष्टिविज्ञान के रहस्यो को सहज ही जान पाते थे।

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Thursday, October 10, 2013

π(pi) की खोज

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>>>कटपयादि संख्या के आधार पर खोज:-



Oh Krishna, the fortune of the Gopis, the detoryer of the demon Madhu, protector of cattle, the one who ventured the ocean-depths, destroyer of evildoers, one with plough on the shoulder and the bearer of nectar, may (you) protect (us)!

The shloka above, seems to be one of the many written in praise of one of the most enigmatic and divine Lords of Hinduism, Krishna. The shloka, like many others, praises certain attributes of Krishna and requests him to protect the devotee. Simple enough, the shloka demonstrates one of the strongest and most intelligent examples of extreme knowledge and wisdom of our ancient men.

Grahacāraṇibandhana based in the year 683 CE and Laghubhāskariyavivarana based in the year 869 CE speak of a certain numerical notation which goes by the name of Katapayadi Sankhya. Under this system, a number is ascribed to each and every alphabet of the script, a concept highly similar to the ASCII system in computers. The image would better explain the relation between the alphabets and the numbers


So, based on the above method, if the letters in the shloka are replaced by the corresponding numbers,
ग - ३, पी - १, भा - ४, ग्य - १, म - ५, धु - ९, र - २, त -६, श्रु- ५, ग - ३, शो - ५, द - ८, धि - ९, स - ७, ध - ९, ग - ३, ख - २, ल - ३, जी - ८, वि - ४, त - ६, ख - २, त - ६, व - ४, ग - ३, ल - ३, र - २, स - ७, ध - ९, र - २
following result is obtained:
३.१४१५९२६५३५८९७९३२३८४६२६४३३८३२७९२
The number, as obvious, is the decimal representation of pi upto 32 decimal places. Who could have thought encrypting a mathematical concept in a devotional Shloka dedicated to Krishna? 

>>>आर्यभट्ट द्वारा खोज:-

चतुरधिकं शतम = १०४ , अष्टगुणं = ८ * १०४ = ८३२
द्वाषष्टि = ६२, तथा सहस्राणाम्  = ६२०००
कुल ६२८३२ 
अयुतद्वय = १०००० * २ = २००००,   विष्कम्भस्य  = व्यास की,
आसन्नो = लगभग, वृत्तपरिणाह = परिधि के
६२८३२ / २०००० = ३.१४१६



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Wednesday, October 9, 2013

वैमानिक शास्त्र

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